King of Shata Dhar ORG - Shyati Nag (Shata dhar)

Author - Shata Dhar ORG Team
04 January 2019. 6 min read

पर्यटक की दृष्टि से उभरता हुआ धार्मिक स्थल - श्याटा धार

श्याटा धार जिला मंडी, हिमाचल प्रदेश , बाली चौकी से करीब पच्चास किलो मीटर दूर सराज क्षेत्र का एक उभरता हुआ पर्यटक स्थल हैं शहर की भाग-दौड़ से दूर, श्याटा धार दिव्य शक्तियों द्वारा संचालित एक ऐसी जगह है जहां अन्वेषण करने के लिए अविश्वसनीय स्थल हैं। खूबसूरत नज़ारों वाला एक अनजाना पर्यटन स्थल, शेटधार दुनिया भर के लोगों को आकर्षित करता है। ईश्वर में आस्था रखने वाले लोगों को दैवीय शक्तियां भी आकर्षित करती हैं। टेढ़े-मेढ़े पहाड़ों से आच्छादित यह स्थान अविश्वसनीय हो जाता है। पर्यटन के लिए श्याटा धार पूरी तरह से अविश्वसनीय है।

श्याटा धार अन्वेषण करने के लिए एक अविश्वसनीय जगह है। भगवान शेट्टीनाग की दिव्य शक्ति से धन्य, श्याटा धार यात्रियों के लिए सबसे लोकप्रिय गंतव्य बनता जा रहा है। पर्वत, प्रकृति, दर्शनीय दृश्य और दैवीय शक्तियाँ यात्री के लिए यहाँ लम्बे समय तक ठहरना आसान बनाती हैं। शेटधार में, भगवान शेट्टीनाग का मंदिर, जिसे मुख्य आकर्षण कहा जाता है, हर दिन खुला रहता है। कई स्थानीय लोग भगवान को धन्यवाद देने या कभी-कभी देव शेट्टीनाग के माध्यम से अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए यहां आते हैं। ऐसा देखा गया है कि देव शेट्टीनाग के महान प्रेम की हर इच्छा पूरी होती है।




अन्य स्थित धार्मिक स्थान

देव शेट्टीनाग के मंदिर के पास, कुछ अन्य दिव्य स्थान जैसे जोगी पत्थर, स्पेहानी मंदिर, स्पेणी धार, भुज मंदिर और सबसे प्रसिद्ध जोगनी माता स्थित हैं। जोगनी माता एक ऐसे स्थान पर स्थित है जो देव शेटिनाग के मंदिर को एक भव्य मार्ग प्रदान करता है। चारों तरफ से भक्त फूल चढ़ाते हैं, आस्था का धागा। और बदले में भक्तों को ढेर सारा प्यार मिलता है।




शेट्टीनाग का मंदिर (कोठी) और मेला

सिराज घाटी के प्राचीन देवता शेट्टीनाग का मुख्य मंदिर (कोठी) बालीचौकी तहसील के डाहर क्षेत्र के बूंग गांव में स्थित है। मंडी जिला मुख्यालय से इसकी सड़क मार्ग से दूरी लगभग 135 किमी है। और इस प्राचीन देवता के मंदिर में प्यादे रखे गए हैं।बुंग से शयाटा धार की दुरी करीबन 4 किलो मीटर हैं , देवते का परसिद्ध बली केली मेला हर बर्ष 8 शाउन (23 - 24 जुलाई ) बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता हैं , बली केलि बुंग से 1. 5 किलो मीटर दूर हैं जहाँ पर देवता कमरुनाग का छोटा सा भव्य मंदिर भी स्थित हैं। मेले में अन्य देवी देवताओं का भी आगमन प्रति वर्ष रहता हैं जिसमे श्यटी नाग जी के छोटे भाई देव जहल का मुख्य योगदान और आशीर्वाद रहता हैं , इसके साथ साथ माता अम्बिका भी बली केले मेले मैं प्रति बर्ष आकर मेले की शोभा बढ़ाते हैं। प्रति वर्ष सेंकडो की संख्या मैं श्रदालु दूर - दूर से मेले में देवते का आशीर्वाद लेने आते है देवते के हर एक कार्य उनके इच्छा से होते हैं, इसके अलाबा शयरी के पर्व अबसर पर देव श्याटी नाग जी का मुख्य और प्रसिद्ध मेला शयाटा - श्यारी को बड़ी धूम धाम से मनाया जाता हैं , देवता के चार बढ़ हैं और बढ़ों से ही नहीं बल्कि प्रदेश के कोने कोने से लोग श्याटा धार शयरी देखने आते हैं। इस दौरान लोग बहुत से चीजे जो काम की ना हो हर कहीं फेंक देते हैं जो की बिलकुल भी उचित नहीं हैं जरुरी समान जो न हो जैसे पोलेथिन इत्यादि उसे उचित स्थान पर ही फेंकना चाहिए , शयटा धार तीर्थ की सफाई रखना हम सब की जिम्मेदारी हैं यदि कोई कार्य उनके विपरीत हो तो देवता इस पर बहुत नराजगी स्पष्ट करते हैं और देवता के मुख्या कार करिंदो को चेतावनी भी देते हैं, मालिक बहुत ही ध्यालु हैं और अपने दयालु स्वभाव से वे देऊलुओं को माफ़ कर लेते हैं वे जानते हैं कि इंसान की सोच कहाँ तक और इंसान गलती का पुतला हैं। उनके विपरीत जाने का साहस शायद ही कोई कर सके , देवता अपने रीती रिवाजों के बहुत भूखे हैं ( यह शब्द बो खुद गुर के माध्यम से बहुत बार बोलते हैं ) देवता की मान्यता मुख्य रूप से बीमारी के लिए हैं दूर - दूर से देवता के भक्त देवता के पास अपने दुःख दर्द और बीमारी को साझा करने के लिए आते हैं , और देवते के मात्र दर्शन से ही बो एक अजीव सा सुख और सकून महसूस करते हैं। अपने ईस्ट की पावन भूमि पर हमारा जन्म होना हमारे लिए सौभग्य का विषय हैं। ।




शेट्टीनाग जी की प्रचलित कथा

देवता शेट्टीनाग की उत्पत्ति के बारे में एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि गांव कटवानू का कटदारा (कटदरा) परिवार का एक चरवाहा श्याटा में भेड़ चराता था। एक दिन वह भेड़ को आराम करने के लिए ले गया जहाँ आज देवता शेट्टीनाग का मंदिर स्थित है और वह वहीं विश्राम करने लगा। नींद आने के बाद उन्हें सपने में दैवीय शक्ति (देव शक्ति) का आभास हुआ। श्री देव शेट्टीनाग ने चरवाहे को अपना परिचय दिया और कहा कि मेरा मंदिर वहीं बन जाए। उन्होंने यह भी कहा कि जब आप भेड़ों को घर वापस ले जाएं तो पीछे मुड़कर न देखें। नींद से जागने के बाद चरवाहा भेड़ों को लेकर लौटने लगा और आगे बढ़ते-बढ़ते उसकी भेड़ों की संख्या भी बढ़ने लगी। भेड़ों की संख्या बहुत अधिक हो गई और जैसे-जैसे हलचल बढ़ती गई, वह उसके साथ नहीं रह सका और उसने पीछे मुड़कर जोगी पत्थर के पास देखा। पीछे देखने पर देव शेतिनाग की शक्ति से उत्पन्न सभी भेड़ें पत्थरों के रूप में परिवर्तित हो गईं जो आज भी जोगनी के भौण (भौण) के साथ मौजूद हैं। घर पहुंचकर उन्होंने यह कहानी लोगों को सुनाई और उसके बाद वहां के लोगों ने एक मंदिर बनवाया। इसके बाद देवता का मोहरा भी तैयार किया गया। यह मोहरा करंदी (एक पहाड़ी शैली की टोकरी) में रखा गया था और मधह (मधाह) गांव के गुरु को इसकी देखभाल की जिम्मेदारी दी गई थी। देवता शेट्टीनाग का रथ भी सदियों के बाद तैयार किया गया था। रथ में मोहरा उर्फ ​​मोहरा खडूल गांव के थार (ठार) सीथू-विठू ने बनवाया था। इस रथ को चेली कहा जाता है और अब देवता सीमाओं के चारों ओर घूमते हैं। श्याटा धार में प्रकट होने के कारण देवता का नाम शेट्टीनाग नाग या श्याटी नाग रखा गया।



क्या हैं गाडू ढालने की प्रक्रिया ?

श्याटा धार मैं स्तिथ जोगी पाथर में प्रत्येक वर्ष कई देवी - देवता अपनी शक्ति अर्जित करने आते हैं , कहा जाता हैं की जब देवी - देवता युद्ध में हार जाये या चोटिल हो जाये तो जोगी पाथर आकर शक्तियां अर्जित करते हैं शक्ति अर्जित करने की प्रक्रिया को गाडू ढालना कहा जाता हैं , जिसमे गाडू पानी नाम धार्मिक स्थान से पानी लोटे में ले आया जाता हैं और देवता जोगी पाथर जो की एक प्थर की शीला हैं उसपर रखा जाता हैं । गाडू ढालने की प्रक्रिया में तीन से चार गुर ( देवता के शिष्य जिनके माद्यम से बो लोगो से संभाद करते हैं ) देवता के साथ बैठते हैं और खूब ढोल नगारो से देवते की पूजा की जाती हैं और यह पूजा तब तक की जाती हैं जब तक जोगी पाथर पर रखे लोटे पर उबाल ना आ जाये। जैसे ही लोटे में रखे पानी मैं उबाल आ जाये और देवते की शक्तिया गुर में आ जाये देवते का गुर उठ कर पानी के लोटे को उठा के देवते के मुख का स्नान करवाता हैं तत्पश्चात देवता श्रद्धालुओं को आशिर्बाद देते हैं । इस प्रक्रिया मैं आधे घंटे से ले कर एक दिन का समय लगता हैं, देव शयटी नाग जी स्वयं किसी विशेष कार्य की पूर्ति के बाद भी गाडू ढालते हैं।



गाडू ढालने वाला रहस्य्मय पानी

गाडू ढालने की प्रक्रिया में जिस पानी का जिक्र किया गया वो पानी कोई आम पानी नहीं होता , बो पानी श्याटा धार से ठीक निचे एक - सौ मीटर की दुरी से लाया जाता हैं और वहीं जोगी पाथर से इसकी दुरी करीब दो-सौ मीटर होगी। इस पानी मैं बहुत सी औषदीयां पायी जाती हैं और सबसे ख़ास बात यह पानी देव श्याटी नाग की स्वयं की देन हैं। इस पानी की मुख्य विषेशता यह हैं की यदि आपको किसी प्रकार का शरीक रोग हो तो इस पानी से नहा कर ठीक हो जाता हैं , बहुत से पर्यटक और श्रद्धालु इस स्थान के बारे मैं कम ही जानते हैं यहाँ पर जो शांति आप अनुभभ करेंगे बो शांति शायद ही और कहीं जगह आप अनुभभ करे। यह तीर्थ चारो औरो से देवदार के सुन्दर और लम्बे लम्बे वृषो से गिरा हुआ हैं जो इसे और भी एकांत बना देता हैं, देव श्याटी नाग की कृपया से कैसा भी मौसम आये यह दिव्य पानी हमेशा ऎसे ही कल - कल बहता रहता हैं



प्रत्येक बर्ष जाते हैं श्रदलुओं को अशिर्बाद देने मंडी शिवरात्रि

सराजघाटी के देव शैटी नाग को शेषनाग के रूप में माना जाता है। देवता की पूरी सराज घाटी में एक अलग पहचान है। यह देवता नियमित रूप से शिवरात्रि महोत्सव में शिरकत करते हैं। शैटी देवता राजाओं के समय से ही छोटी काशी आते हैं और शिवरात्रि महोत्सव के दौरान निकलने वाली जलेबों में भी देव शैटी नाग शिरकत करते हैं। इस जलेब में अधिकतर देवताओं को शामिल होने का अवसर नहीं मिलता, लेकिन शैटी नाग जलेब में भी शिरकत करते हैं। यह एक ऐसे देवता हैं जो राज माधव राय मंदिर में शिवरात्रि के दौरान निवास करते हैं। देव शैटी नाग के अलावा देवी अंबिका व देवी जुफर की जालपा भी राज माधव राय मंदिर में निवास करते हैं। यहां निवास करने वाले देवता भी चु¨नदा ही हैं। जलेब में डाहर की अंबिका माता और देव शैटी नाग साथ-साथ चलते हैं। देवता के कारदार छापे राम ने कहा कि शैटी नाग का मूल स्थान शैटधार में स्थित है वहां पर देवता की पैड़ी है। पैड़ी के इतिहास के बारे में वर्तमान पीढ़ी को अधिक जानकारी नहीं हैं। इसके अलावा देवता की कोठी बुंग गांव में स्थित है। वहीं पर देवता का रथ रहता है। देव शैटी नाग की विशेषता यह है कि अगर कोई उनकी पवित्रता को भंग कर दे तो देवता रूठ जाते हैं। उसी प्रकार अगर जलेब के समय भी अगर प्रशासन द्वारा कोई गड़बड़ की जाती है तो देवता रुष्ठ होते हैं।


People who read this also read

article

History of Kullu Valey ( Bijli Mahadev )

Author Name
07 January | 6 min read
article

History of Mata shikari Devi

Author Name
07 January | 6 min read
article

History of Choti kashi mandi

Author Name
07 January | 6 min read